दर में कटौती का फिर आया अवसर
मुंबई में भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर वाईवी रेड्डी की नई पुस्तक इंडियन फिस्कल फेडरलिज्म (सह लेखक जी आर रेड्डी) के लोकार्पण के अवसर पर मौजूदा गवर्नर शक्तिकांत दास ने रेड्डी के कार्यकाल को निरंतरता और बदलाव के समुचित मिश्रण वाला कार्यकाल बताया। रेड्डी ने सितंबर 2003 में पद संभालते समय खुद भी कुछ ऐसा ही कहा था। कार्यक्रम के दौरान जब रेड्डी की बारी आई तो उन्होंने नए गवर्नर के रुख में आए बदलाव की भी बात की। रेड्डी ने अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में ब्याज दरों में कभी कटौती नहीं की थी जबकि दास ने अपनी पहली मौद्रिक नीति बैठक में ही दर कम की थी। रेड्डी के कार्यकाल के दौरान यह गवर्नर की नीति थी जबकि अब यह निर्णय मौद्रिक नीति समिति करती है।
ऐसे में अगर 4 अप्रैल को होने वाली नए वित्त वर्ष की पहली बैठक में पुन: दर में कटौती हो जाए तो आश्चर्य नहीं। यह कटौती कितनी होगी? फरवरी की तरह 25 आधार अंक या इससे अधिक यानी 50 आधार अंक? फरवरी में आरबीआई ने नीतिगत दर में कटौती कर उसे 6.25 फीसदी कर दिया था। अगस्त 2017 के बाद यह पहली कटौती थी। उसने समाकलित सख्ती के स्थान पर मौद्रिक नीति को निरपेक्ष भी बनाया था। उस वक्त उसने खाद्य सामग्री में निरंतर अपस्फीति और ईंधन कीमतों में कमी और 2019 में मॉनसून के सामान्य रहने की उम्मीद के साथ आरबीआई ने खुदरा महंगाई के अनुमान को मार्च 2019 तिमाही के लिए घटाकर 2.8 फीसदी कर दिया। वित्त वर्ष 2020 की पहली तिमाही में इसके 3.2 से 3.4 फीसदी और तीसरी तिमाही में 3.9 फीसदी रहने की बात कही गई। फरवरी में देश की मुख्य मुद्रास्फीति सालाना आधार पर 2.57 फीसदी बढ़ी। हालांकि खाद्य मुद्रास्फीति लगातार पांचवें महीने नकारात्मक बनी रही लेकिन क्रमबद्घ तरीके से देखें तो इसमें इजाफा हुआ।
मुद्रास्फीति बढऩे की दशा में आरबीआई कटौती क्यों करेगा? हालांकि फरवरी के आंकड़े विश्लेषकों के अनुमान से अधिक थे लेकिन मार्च तिमाही में मुद्रास्फीति आरबीआई के अनुमान से कम रह सकती है। वित्त वर्ष 2020 के लिए यह 4 फीसदी से कमतर रह सकती है। तेल कीमतें बढ़ी हैं लेकिन स्थानीय मुद्रा की मजबूती उससे निपटने में कारगर रही। आरबीआई मुद्रास्फीति के लिए 4 फीसदी का लक्ष्य 2 फीसदी के दायरे में रख रहा है। मुद्रास्फीति के अलावा गत नीति और वर्तमान के बीच ऐसा क्या हुआ कि दर कम की जाए? आर्थिक गतिविधियां कमजोर बनी हुई हैं और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में वृद्घि दिसंबर की 2.6 फीसदी से घटकर जनवरी में 1.7 फीसदी रह गई।
ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में कमी आ रही है और निवेश का परिदृश्य बद से बदतर हो गया है। सीमेंट, स्टील, बिजली, वाहन और माल ढुलाई आदि के क्षेत्र के आंकड़े निवेश चक्र में अत्यधिक बुरी स्थिति दर्शा रहे हैं। शुरुआत में कई लोग यह मानते थे कि गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए नकदी संकट इस दिक्कत के लिए जिम्मेदार है लेकिन अब अंदाजा लग रहा है कि इसकी वजहें कहीं अधिक गहरी हैं। फेडरल रिजर्व के शांतिवादी रुख और वैश्विक वृद्घि में नरमी भी आरबीआई को दरों में कटौती के लिए प्रोत्साहित करेगी। नॉर्वे, अर्जेंटीना और तुर्की के अलावा शेष विश्व शिथिल मौद्रिक नीति व्यवस्था की जानिब बढ़ रहा है। नॉर्वें के केंद्रीय बैंक ने हाल ही में प्रमुख नीतिगत दर में 0.75 फीसदी से एक फीसदी की बढ़ोतरी की है। यह सितंबर के बाद से दूसरी बढ़ोतरी है। जून में एक बार फिर बढ़ोतरी की जा सकती है। अर्जेंटीना ने मुद्रास्फीति का मुकाबला करने और अपनी मुद्रा को मजबूत बनाने के लिए मानक ब्याज दर में इजाफा किया है। तुर्की के केंद्रीय बैंक ने भी लीरा की कमजोरी के बाद मौद्रिक रुख सख्त किया है।
यूरो क्षेत्र और स्वीडन निरंतर प्रोत्साहन के बावजूद लगातार नकारात्मक ब्याज दरों के चक्र में हैं। 10 वर्ष के मानक अमेरिकी ट्रेजरी नोट पर प्रतिफल 2007 के बाद पहली बार तीन महीने की दर से नीचे चला गया है। इसे भी 2019 के अंत में दरों में कटौती का संकेतक माना जा रहा है।
इस परिदृश्य में मौद्रिक नीति समिति के समक्ष तीन विकल्प हैं:
शांतिपूर्ण रुख के साथ 25 आधार अंक की कटौती।
25 आधार अंक की कटौती के साथ रुख में बदलाव और उसे निरपेक्ष से समायोजन वाला बनाना।
50 आधार अंक की कटौती के साथ रुख में बदलाव।
हालांकि कई लोग 50 आधार अंक की कटौती की बात कर रहे हैं लेकिन मेरा मानना है कि यह 25 आधार अंक की होगी। अगर मौद्रिक नीति समिति और अधिक आंकड़ों की प्रतीक्षा करना चाहती है तो संभव है वह रुख में बदलाव न लाए लेकिन थोड़ी शिथिलता दिखाए। 50 आधार अंक की कटौती इसलिए नहीं क्योंकि आरबीआई नई सरकार के आगमन तक प्रतीक्षा कर सकता है। इसके अलावा तब तक मॉनसून को लेकर स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। अगर रुख में बदलाव नहीं लाया गया तो उसकी शुचिता पर प्रश्न चिह्न लग सकता है। जून और अगस्त 2018 में दर में वृद्घि तब हुई थी जब रुख निरपेक्ष था। पिछली नीति में दरों में कटौती के साथ निरपेक्ष रुख रखा गया था। अगर एक अन्य कटौती के लिए रुख में बदलाव नहीं किया गया तो शिथिलता का रुख सही दिशा देने वाला साबित होगा। बाजार पहले ही 25 आधार अंक की कटौती के हिसाब से मूल्यांकित है और अब यह आरबीआई पर निर्भर करता है कि वह और अधिक कटौती करता है या नहीं। 50 आधार अंक की कटौती यह बता सकती है कि आरबीआई गिरावट के चक्र से बाहर निकलना चाहता है।
मौद्रिक नीति समिति के सभी छह सदस्य 25 आधार अंक की कटौती के पक्ष में हो सकते हैं। एक-दो सदस्य बड़ी कटौती की भी वकालत कर सकते हैं। रुख में बदलाव पर भी सब एकमत नहीं होंगे। वर्ष की पहली नीति यह भी तय करेगी कि देश की वृद्घि की दिशा में आरबीआई का रुख क्या है। फरवरी की नीति में आरबीआई ने 2020 की आर्थिक वृद्घि का अपना अनुमान संशोधित करके 7.6 फीसदी से 7.4 फीसदी कर दिया था। क्या इसमें और कटौती की जाएगी? फिच रेटिंग ने हाल ही में 2020 में भारत के वृद्घि अनुमान केा 7 फीसदी से घटाकर 6.8 फीसदी कर दिया। जापान की ब्रोकरेज फर्म नोमुरा ने भी कहा है कि 2020 में भारत की वृद्घि दर के 7 फीसदी से नीचे आ सकती है।
मार्च के पहले सप्ताह में सांख्यिकी कार्यालय ने 2018-19 के जीडीपी अनुमान को 7.2 फीसदी से घटाकर 7 फीसदी कर दिया था जो पांच वर्ष का निम्रतम स्तर था। दिसंबर तिमाही के लिए उसने 6.6 फीसदी का अनुमान जताया है जो पांच तिमाहियों का न्यूनतम है। दास के पास अवसर है कि नीतिगत दर में कटौती कर वृद्घि पथ पर वापसी का मार्ग प्रशस्त करें।
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