Tuesday, March 19, 2019

Hindi Editorial for RRB PO and Clerk 19th March 2019

निजी बैंक के सीईओ का कैसे हो संरक्षण

दुनिया की सबसे तेज विकसित होती अर्थव्यवस्था में निजी और विदेशी बैंकों के सीईओ इन दिनों उदास हैं क्योंकि देश का बैंकिंग नियामक उनके वेतन भत्तों में कटौती की योजना बना रहा है। जिन लोगों को लगता है कि ये बैंकर ज्यादा कमाते हैं, या जिन्हें लगता है कि ये अपने सरकारी बैंकों के समकक्षों की तुलना में ज्यादा कमाते हैं (इनमें से कुछ की बैलेंस शीट भी बहुत बड़ी है) वे यह सब देखकर उल्लासित हैं।  देश के बैंकिंग अधिनियम के अनुसार निजी और विदेशी बैंकों को अपने पूर्णकालिक निदेशकों और सीईओ के वेतन भत्तों के निर्धारण के लिए नियामकीय मंजूरी की आवश्यकता होती है। इस मामले में रिजर्व बैंक बहुत अधिक उदार नहीं है। इसके बावजूद उनको शेयर विकल्प के माध्यम से ठीकठाक वेतन भत्ते मिलते हैं। ये उसके वेतन पैकेज से इतर होता है। 
 
अब रिजर्व बैंक चाहता है कि शेयर विकल्प को उनके चर वेतन में शामिल किया जाए। इसके लिए उनके तय वेतन से 200 फीसदी तक की सीमा तय की जाएगी। इसके लिए 50 फीसदी का आधार तय किया जाएगा। इतना ही नहीं उनके चर वेतन का कम से कम आधा हिस्सा गैर नकदी का होगा। फिलहाल बैंक सीईओ के चर वेतन को 70 फीसदी पर सीमित किया गया है और इसके लिए कोई आधार तय नहीं है। नई योजना के मुताबिक अगर कोई बैंक सीईओ एक करोड़ रुपये सालाना का तय वेतन पाता है तो उसका चर हिस्सा 50 लाख रुपये से 2 करोड़ रुपये के बीच होगा। इसमें शेयर विकल्प शामिल होगा जो इसका आधा होगा। इस प्रस्ताव के हिसाब से देखें तो कुल चर वेतन का कम से कम 60 फीसदी हिस्सा न्यूनतम तीन वर्ष के लिए लंबित रखना होगा। इसके अलावा एक ऐसा समझौता भी होगा जिसके तहत सीईओ कुछ खास परिस्थितियों में पहले ही चुकाया जा चुका वेतन-भत्ता लौटाना होगा। यह भी कि अगर बैंक फंसी हुई परिसंपत्ति का खुलासा नहीं कर रहा हो और उसके लिए धनराशि अलग नहीं कर रहा हो तो उसका विलंबित भुगतान रोका जा सकता है।
 
आरबीआई यह भी चाहता है कि बैंक अपने वरिष्ठ कर्मचारियों में से तथाकथित जोखिम उठाने वालों को चिह्नित करे, जिनके कदम बैंक के प्रदर्शन पर असर डालते हैं।  कोई भी व्यक्ति नियामक की हालिया पहल में खामी नहीं खोज सकता है जबकि इन दिनों दुनिया भर में बैंकरों के वेतन भत्तों का मसला नियामकीय सुधार के केंद्र में है। आरबीआई इस मामले में कुछ पहले दृष्टि डाल सकता था क्योंकि कुछ निजी भारतीय बैंकों में कॉर्पोरेट संचालन की स्थिति बहुत सम्मानजनक नहीं है।  अगर बैंक सीईओ के जोखिम भरे कदमों के कारण बैंक की सेहत गड़बड़ होती है या फंसे हुए कर्ज को छिपाया जाता है तो उसको पूर्ण वेतन भत्ते न देने की योजना स्वागतयोग्य है। इसी प्रकार ब्रिटेन के नियामक फाइनैंशियल सर्विसेज अथॉरिटी के तर्ज पर ऐसे अधिकारियों की पहचान के दौरान ऐसे व्यक्तियों पर ध्यान दिया जाता है जो प्रभावशाली हों, यह भी स्वागतयोग्य है। अगर नियामक सीईओ के वेतन का जिम्मा संभालेगा तो बैंक बोर्ड की इससे संबंधित समिति क्या करेगी? 
 
बैंक कैसी प्रतिक्रिया देंगे? संभव है वे वेतन का तयशुदा हिस्सा बढ़ा दें। मेरी समझ कहती है कि मौजूदा वेतन-भत्तों को बचाने के लिए कुछ निजी बैंक सीईओ के तयशुदा वेतन में 50 फीसदी तक का इजाफा करेंगे। यूरोपियन बैंक में ऐसा ही हुआ है।  इससे नियामक का कदम बेमानी हो जाएगा। इससे एक किस्म की आश्वस्ति आ सकती है और किफायत खत्म हो सकती है। शीर्ष पद के लिए उत्साह में कमी आ सकती है। शेयर विकल्प का मूल्यांकन किस प्रकार किया जाएगा? अगर किसी सीईओ को वनिला शेयर (ऐसे शेयर जिन्हें तय समय सीमा में पूर्व निर्धारित कीमत पर बेचा जा सकता है) दिए जाते हैं तो उनका मूल्यांकन आसान होता है और संबंधित अधिकारी को इसका पूर्ण आर्थिक लाभ मिलता है। जबकि इम्प्लायी स्टॉक ऑप्शन प्लान (ईसॉप) में कर्मचारी के पास विकल्प होता है कि वह किसी कंपनी के शेयर भविष्य की तिथि में पूर्व निर्धारित दर पर खरीदे। अगर शेयर का बाजार मूल्य खरीद से अधिक हो तो कर्मचारी उसे बेचकर लाभ कमा सकता है लेकिन अगर वह तय मूल्य से नीचे हो तो कर्मचारी उसे नहीं बेचेगा।
 
निश्चित तौर पर विकल्प का विशुद्घ मूल्य आंकने का एक फॉर्मूला है लेकिन देश के निजी बैंकों का बाजार प्रदर्शन एकीकृत नहीं है। उदाहरण के लिए एचडीएफसी बैंक के कर्मचारियों के पास हमेशा पैसा रहा है क्योंकि कंपनी के शेयरों की कीमत हमेशा ऊंची बनी रही जबकि आईसीआईसीआई बैंक के कर्मचारियों को बीते वर्षों में शायद ही फायदा हुआ हो। येस बैंक के शेयर तो बीते सात महीने में 40 फीसदी तक गिरे हैं। अगर किसी कंपनी के शेयर अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं तो क्या उसके सीईओ को उसके अच्छे काम का लाभ नहीं मिलना चाहिए?
 
नवंबर 2018 में देश की दूसरी सबसे बड़ी टायर निर्माता कंपनी अपोलो टायर्स के प्रवर्तक ओंकार कंवर और उनके बेटे नीरज को वेतन भत्तों में 30 फीसदी कटौती स्वीकार करनी पड़ी क्योंकि अल्पांश हिस्सेदारों ने सालाना आम बैठक में कंपनी के प्रबंध निदेशक के रूप में नीरज की पुनर्नियुक्ति को खारिज कर दिया था। ऐसा भारी वेतन भत्तों की मांंग और कमजोर वित्तीय प्रदर्शन के कारण किया गया।  सीईओ के वेतन पर निर्णय बोर्ड और निवेशकों को लेना चाहिए। जब बोर्ड नाकाम हो तब रिजर्व बैंक को दखल देना चाहिए। केवल बैलेंस शीट का आकार ही इसके निर्धारण की एकमात्र वजह नहीं होना चाहिए। इस काम की जटिलता और चुनौतियों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
 
स्टॉक की पेशकश ने देश में कई पेशेवरों को उद्यमी में तब्दील किया है, बढिय़ा बैंक तैयार किए हैं और बिखरते कारोबारों को बचाया है। अत्यधिक जोखिम उठाने वालों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए और सुशासन में यकीन न करने वालों को दंडित किया जाना चाहिए लेकिन नियामक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अच्छा प्रदर्शन करने वालों को दिक्कत न हो। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हमारे सर्वश्रेष्ठ बैंकर गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, बीमा कंपनियों, एफएमसीजी और इन्फोटेक क्षेत्र का रुख कर सकते हैं। 
 
अगर हमें अच्छे प्रदर्शन का ध्यान रखना है तो देश में सरकारी बैंकों के सीईओ के वेतन-भत्तों को बिना देरी किए नए सिरे से तय करने की आवश्यकता है। इसे अफसरशाहों के वेतन से अलग करना होगा। कम से कम दो बैंकों में ईसॉप का प्रस्ताव वित्त मंत्रालय के पास वर्षों से लंबित है। क्या किसी ने इसके बारे में सुना है। 

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