Wednesday, March 13, 2019

Hindi Editorial for RRB PO and Clerk 14th March 2019

भारत में एफडीआई का बेहतर माध्यम-सिंगापुर या मॉरीशस?

भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित करने के मामले में मोदी सरकार के प्रदर्शन की चमक थोड़ी फीकी हो चुकी है। पिछले वित्त वर्ष में कुल एफडीआई प्रवाह 2016-17 की तुलना में महज 1.25 फीसदी ही बढ़ा था। चालू वित्त वर्ष में विदेशी मुद्रा के प्रवाह में गिरावट आने का अनुमान जताया गया है। वर्ष 2018-19 की पहली तीन तिमाहियों में कुल एफडीआई प्रवाह पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 3 फीसदी गिरावट के साथ 46.62 अरब डॉलर रहा। अगर चौथी तिमाही में भी यही रुझान रहा तो यह मोदी सरकार के कार्यकाल में विदेशी मुद्रा प्रवाह में सालाना गिरावट का पहला मौका होगा।
मोदी शासन के पहले दो वर्षों में विदेशी मुद्रा प्रवाह क्रमश: 25 फीसदी और 23 फीसदी बढ़ा था। वहीं 2016-17 में वृद्धिï दर थोड़ा सुस्त पड़ते हुए 8 फीसदी रही। इस लिहाज से वर्ष 2017-18 में एफडीआई वृद्धि दर में सुस्ती आना और वर्ष 2018-19 में नकारात्मक रहने का अनुमान अपने आप में अहम है। 
विदेशी निवेश के मोर्चे पर मोदी सरकार का प्रदर्शन 2009-10 से लेकर 2013-14 के दौरान मनमोहन सरकार के प्रदर्शन से बेहतर नजर आता है। मनमोहन सरकार के उन पांच वर्षों में से तीन साल एफडीआई प्रवाह में काफी कमी आई थी। वर्ष 2009-10 में 10 फीसदी, 2010-11 में 8 फीसदी और 2012-13 में 26 फीसदी की बड़ी गिरावट दर्ज की गई थी। हालांकि 2011-12 में 34 फीसदी की जोरदार तेजी आई थी जबकि 2013-14 में 5 फीसदी बढ़त रही थी। मनमोहन सरकार के अंतिम साल 2013-14 का कुल 36 अरब डॉलर का एफडीआई 2009-10 के 37.7 अरब डॉलर के प्रवाह से भी कम रहा था। इस तरह मोदी सरकार पिछली सरकार की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करती दिख रही है। 
लेकिन एफडीआई के मामले में इसके प्रदर्शन के कुछ अन्य पहलू भी हैं जिन पर गहरी नजर डालने की जरूरत है। एफडीआई आकर्षित करने के मामले में सेवा क्षेत्र अब भी सबसे बड़ी भूमिका निभा रहा है। एफडीआई की सरकारी परिभाषा के मुताबिक वित्तीय इकाइयां, बैंक, बीमा सेवाएं, बिजनेस आउटसोर्सिंग, शोध एवं विकास, कूरियर सेवाएं, टेक्नोलजी फर्म और परीक्षण एवं विश्लेषण कंपनियां सेवा क्षेत्र में आती हैं। वर्ष 2017-18 की गिरावट के बाद सेवा क्षेत्र में फिर से एफडीआई प्रवाह बढ़ा है। चालू वित्त वर्ष की पहली तीन तिमाहियों में सेवा क्षेत्र में 6.59 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया है। कंप्यूटर सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर भी ऐसा क्षेत्र है जिसका प्रदर्शन काफी हद तक संतुलित रहा है। इस क्षेत्र में एफडीआई प्रवाह अप्रैल-दिसंबर 2018 के दौरान करीब 5 अरब डॉलर रहा है जबकि 2017-18 के समूचे वित्त वर्ष में यह 6.15 अरब डॉलर था। कारोबार एवं दूरसंचार दो अन्य क्षेत्र हैं जो बड़े पैमाने पर एफडीआई आकर्षित करते रहे हैं। इनकी तुलना में निर्माण एवं फार्मा क्षेत्र विदेशी निवेश के मामले में काफी सुस्त रहे हैं। 
विनिर्माण क्षेत्र में वाहन उद्योग का प्रदर्शन काफी हद तक स्थिर रहा है। 2018-19 की पहली तीन तिमाहियों में 2.1 अरब डॉलर के विदेशी निवेश के साथ इस क्षेत्र ने 2017-18 के कुल एफडीआई प्रवाह को पीछे छोड़ दिया है। इससे लगता है कि एफडीआई आकर्षित करने के मामले में वाहन उद्योग का प्रदर्शन बरकरार है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि सेवा क्षेत्र ही भारत के एफडीआई प्रवाह में अग्रणी कारक है। अर्थव्यवस्था के लिए इसकी अपनी जटिलताएं हैं। सेवा क्षेत्र आम तौर पर कुशल कामगारों के लिए ही अधिक मुफीद है और यह कृषि कामगारों को बड़ी संख्या में नहीं खपा सकता है।
एफडीआई प्रवाह के आंकड़ों से एक और तथ्य का पता चलता है। भारत के लिए एफडीआई के दो सबसे बड़े स्रोत मॉरीशस और सिंगापुर हैं। गत 18 वर्षों में भारत आने वाली कुल विदेशी मुद्रा का आधे से भी बड़ा हिस्सा इन देशों का है। इस दौरान मॉरीशस और सिंगापुर से कुल मिलाकर 2.1 लाख करोड़ डॉलर निवेश भारत में हुआ। दरअसल इन दोनों देशों में मिलने वाले कर लाभों के चलते ये कंपनियों के लिए पसंदीदा निवेश माध्यम रहे हैं। लेकिन वर्ष 2017 के बाद से निवेश पर मिलने वाले कर लाभों में चरणबद्ध कटौती शुरू हो चुकी है। इसके पीछे मंशा कर चोरी रोकने, राजस्व क्षति कम करने और निवेश प्रवाह दुरूस्त करने की है। अगस्त 2016 में भारत ने मॉरीशस के साथ संशोधित कर संधि की अधिसूचना जारी की थी जिसमें मॉरीशस के रास्ते निवेश आने पर पूंजीगत लाभ कर लगाने का प्रावधान था। 1 अप्रैल, 2017 से मॉरीशस से आने वाले ऐसे निवेश पर तत्कालीन घरेलू दर की आधी दर से पूंजीगत लाभ कर लगाया गया और 1 अप्रैल, 2019 से यह रियायत भी हट जाएगी।
मार्च 2017 में सरकार ने सिंगापुर से आने वाले निवेश पर भी शुल्क लगाने वाली ऐसी ही अधिसूचना जारी की थी। हालांकि इस प्रावधान के असर को कम करने के लिए सरकार ने 1 अप्रैल, 2017 से 50 फीसदी दर से शुल्क ही लगाया। लेकिन 1 अप्रैल, 2019 से पूंजीगत लाभ कर पूरी तरह लगने लगेगा। बहरहाल शुल्क लगने के बाद भी सिंगापुर या मॉरीशस से होने वाले विदेशी निवेश पर 2017-18 में कोई खास असर नहीं देखा गया। उस साल मॉरीशस से करीब 16 अरब डॉलर का निवेश आया जो 2016-17 से एक फीसदी अधिक था। वहीं सिंगापुर से आने वाला निवेश 40 फीसदी बढ़कर 12 अरब डॉलर पर पहुंच गया। वर्ष 2018-19 की पहली तीन तिमाहियों का रुझान देखें तो सिंगापुर के रास्ते आने वाला निवेश बढ़ा है जबकि मॉरीशस से आने वाले निवेश में बड़ी सुस्ती देखी जा रही है। 
लगता है कि नए कर कानून का सिंगापुर पर नाममात्र का असर पड़ा है लेकिन मॉरीशस बुरी तरह प्रभावित हुआ है। सिंगापुर से होने वाला विदेशी प्रवाह तो असल में बढ़ गया है। वैसे सही तस्वीर 2019-20 के आंकड़ों से ही साफ हो पाएगी जब इन दोनों देशों से आने वाले विदेशी निवेश पर सौ फीसदी पूंजीगत लाभ कर लगने लगेगा। वैसे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या सिंगापुर को लाभ मॉरीशस की कीमत पर हुआ है?

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