Wednesday, April 3, 2019

Hindi Editorial for RRB PO and Clerk 2019-20

अचानक नहीं हुआ होगा अंतरिक्ष में परीक्षण का फैसला

पिछले दिनों एक ऐंटी सैटेलाइट (ए-सैट) परीक्षण में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान (डीआरडीओ) की अवरोधक मिसाइल ने पृथ्वी से 300 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक उपग्रह को नष्ट कर दिया। यह परीक्षण कई सवाल खड़े करता है। आरोप है कि यह परीक्षण राजनीति से प्रेरित था और इस समय इस क्षमता के प्रदर्शन की जरूरत न होते हुए भी आम चुनाव को ध्यान में रखकर इसे अंजाम दिया गया। कुछ की दलील है कि यह सैन्य शोध एवं विकास के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इस बहस को समझने के लिए बैलिस्टिक मिसाइल, बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस और ए-सैट अवरोध को समझना आवश्यक है।
बैलिस्टिक मिसाइल: बैलिस्टिक मिसाइल एकदम सामान्य सिद्धांत पर काम करती है और इसका प्रहार काफी हद तक दिशा और शक्ति पर निर्भर करता है। अग्नि-5 जैसी लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल को एक सील बंद कनस्तर से दागा जाता है। लॉन्च के वक्त कनस्तर के भीतर स्थित गैस जनरेटर 50 टन की मिसाइल को 20-25 मीटर प्रति सेकंड की गति से छोड़ता है। बाहर आने के बाद पहले चरण की रॉकेट मोटर काम करने लगती है और मिसाइल को ऊपर ले जाती है। 
30 सेकंड के भीतर यह सुपरसोनिक गति पकड़ लेती है और एक मिनट बाद जब पहला चरण समाप्त होता है और दूसरा चरण शुरू होता है तब मिसाइल ध्वनि की गति से पांच गुना तेजी से यात्रा कर रही होती है। जब तीसरा चरण समाप्त होता है और मिसाइल बूट चरण में आती है तब मिसाइल पृथ्वी से 1,200 से 1,400 किमी ऊपर रहती है और वह ध्वनि की गति से छह गुना तेजी से भ्रमण करती है। वह इस गति से 5,000 किलो युद्धक सामग्री को लक्ष्य की ओर ले जाता है जबकि गुरुत्व बल उसे पृथ्वी की ओर खींचता है। वातावरण में पुन: प्रवेश के समय मिसाइल की नोक 3,000-4,000 डिग्री सेंटीग्रेड तक गर्म हो जाती है। 45 सेकंड की इस अवधि में यह नोक धीरे-धीरे जल जाती है और अंदर रखी युद्ध सामग्री बच जाती है। 
इस चरण में मिसाइल को अवरुद्ध न किया जा सके और उस पर हमला करना कठिन हो इसलिए इसमें लगी युद्ध सामग्री अपना स्थान बदलकर पैंतरेबाजी करती है। इस बीच एक गाइडेंस सिस्टम मिसाइल को लक्ष्य की ओर ले जाता है। डीआरडीओ के मुताबिक अग्नि-5 मिसाइल 5,000 किमी की दूरी पर तय लक्ष्य से कुछ 100 मीटर के दायरे में प्रहार करती है।
ऐंटी बैलिस्टिक मिसाइल: यह प्रणाली बैलिस्टिक मिसाइल को नष्ट करने के लिए होती है। इसे शहरों और कमांड पोस्ट जैसी जगहों के आसपास लगाया जाता है। अपनी दिशा में आ रही बैलिस्टिक मिसाइल की पहचान, प्रोफाइलिंग और मार गिराना एक जटिल काम है। शत्रु निशाना सुनिश्चित करने के लिए एक साथ कई मिसाइल भी दाग सकता है।
सैद्धांतिक तौर पर एक मिसाइल को किसी भी चरण में मारा जा सकता है। बूट चरण के दौरान जब यह धीमी होती है तब इसे सबसे आसानी से निशाना बनाया जा सकता है। परंतु यह चरण केवल 5 मिनट का होता है यानी अवरोध के लिए पर्याप्त समय नहीं होता और यह लक्ष्य से हजारों किमी दूर होती है। मध्यम चरण 1,200 सेकंड या 20 मिनट का होता है। इस दौरान सामने से आ रही मिसाइल को अवरुद्ध किया जा सकता है लेकिन दूरी फिर भी अधिक होती है और इसकी गति बहुत तेज होती है।
टर्मिनल चरण में मिसाइल को मार गिराने का असली अवसर होता है। कंप्यूटरीकृत ऐंटी बैलिस्टिक मिसाइल तंत्र के लिए यहां आसानी होती है क्योंकि उसका निशाना करीब होता है। वातावरण में प्रवेश के कारण मिसाइल की गति काफी कम हो चुकी होती है। मिसाइल को दो स्तरों पर रोका जा सकता है। पहला पृथ्वी से 150 किमी की ऊंचाई पर और दूसरा 30 से 40 किमी ऊपर। चूक की गुंजाइश कम करने के लिए दो इंटरसेप्टर लॉन्च किए जाते हैं।
शत्रु की मिसाइल का जल्द से जल्द पता चलने पर ही उसे रोका जा सकता है। आदर्श तौर पर निगरानी उपग्रहों को शत्रु द्वारा दागी गई मिसाइल का पता लगाना चाहिए और ऐसे में ऐंटी बैलिस्टिक मिसाइल तंत्र स्वत: सक्रिय हो जाता है। डीआरडीओ ऐसे उपग्रह पर काम कर रहा है लेकिन अभी ऐंटी बैलिस्टिक मिसाइल तंत्र लंबी दूरी के रडार पर भरोसा करता है जो इजरायल के ग्रीन पाइन रडार से ली गई है।
यह शत्रु की मिसाइल को 1,000 किमी दूर चिह्नित कर लेती है। अंतिम चरण में शत्रु की ओर से आ रही मिसाइल की गति दो किमी प्रति सेकंड तक धीमी हो जाती है जबकि उसे रोकने वाली मिसाइल के पास 150 किमी की ऊंचाई तक पहुंचने के लिए दो मिनट से कम वक्त होता है। वह तेज गति से ऊपर जा रही होती है। तमाम आकलन के बाद यह शत्रु की मिसाइल के 10 मीटर के दायरे में विस्फोट कर सकती है।
ऐंटी-सैटेलाइट (ए-सैट): एक सैटेलाइट को मारने के लिए वैसी ही तकनीक चाहिए जिसका परीक्षण डीआरडीओ 2008 से ऐंटी बैलिस्टिक मिसाइल में करता आया है। प्रमुख अंतर यह है कि सैटेलाइट 300 किमी की ऊंचाई पर होता है जबकि उपरोक्त परीक्षण 30 से 150 किमी ऊंचाई के लिए किए गए। उस ऊंचाई पर प्रहार करने के लिए कहीं उन्नत प्रणाली चाहिए। सैटेलाइट पर प्रहार सटीक होना जरूरी है क्योंकि यह 27,000 किमी प्रति घंटे की तेजी से गतिशील होता है। दूसरी ओर इसे निशाना बनाना आसान भी होता है क्योंकि यह एक तयशुदा मार्ग पर चलता है और इसकी गतिविधियों के बारे में पूरा अंदाजा रहता है।
हालिया ए-सैट परीक्षण का समय सवाल खड़े करता है। इस परीक्षण के पहले दो वर्ष तक तैयारी चली होगी इसलिए यह कहना सही नहीं कि सरकार ने अचानक निर्णय लिया। परंतु यह दलील भी ठीक नहीं कि भारत ने अंतरिक्ष सुरक्षा व्यवस्था से बाहर होने के भय से ऐसा किया होगा।

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